शुक्रवार, 2 सितंबर 2011

ANSHAN ABHI BAKI HAI

 मातृभाषा   और  देश का विकास                                                                                                                        अन्ना के आन्दोलन ने देश की जनता को जगा दिया है.  राजनीतिक दलों को जनता की असल ताकत का अहसास भी शायद अब हो गया होगा.भारत में इस तरह की जागरूकता के लिए जरुरी  है आम जनता की सक्रिय राजनीतिक भागीदारी और उनका राजनीतिक शिक्षण .इसके लिए जरुरी है कि कानूनी जानकारियाँ आम जनता को अपनी मातृभाषा में आसानी से उपलब्ध हों. संसद में क्या हो रहा , न्यायालयों में क्या हो रहा है ? इन महत्त्वपूर्ण बातों की सम्पूर्ण जानकारी आम जनता को नहीं हो पाती. विभिन्न प्रकार की जनकल्याणकारी योजनाओं की जानकारी और उनका लाभ उठाने की प्रक्रिया तक आम आदमी को नहीं पता .क्योंकि इन बातों की विस्तृत जानकारी आम आदमी को अपनी मातृभाषा में नहीं मिल पाती.आम आदमी के सुविधा के लिए असंख्य  NGO देश भर में फैले हुए हैं. पर क्या आम आदमी को पता है कि NGO किस चिड़िया का नाम है . जागरूकता  लाने लिए के सबसे जरुरी है कि हमारी आवाज़ हर आम और ख़ास तक पहुँचे .और ऐसा करने में कोई विदेशी भाषा  हमारी थोड़ी सहायता ज़रूर कर सकती है पर हमारे मकसद को पूरा नहीं कर सकती. जिस दिन सभी महत्त्वपूर्ण  जानकारियाँ आम जनता को अपनी मातृभाषा में मिलने लगेंगी  उस दिन से हमारा देश तरक्की की सीढ़ियाँ दर सीढ़ियाँ चढ़ता चला जाएगा. किसी भी भ्रष्टाचारी का बच निकलना लगभग असंभव हो जाएगा. जब जानकारी होगी तब आम जनता नियमों का हवाला देकर हर भ्रष्टाचारी से हिसाब माँग सकेगी,न्यायालय और संसद में किस कानून के अंतर्गत क्या फैसला हो रहा है और क्यों हो रहा है , यह  समझ पायेगी. संसद में पेश किये जाने वाले विधेयकों के मसौदों  और उसके  कानून बनने की प्रक्रिया के लिए निर्धारित नियमों के बारे में जानकारी   होने पर आम जनता लोकपाल बिल और जनलोकपाल बिल जैसे फर्क  जान पाएगी. जो कि भारत देश के सुनहरे भविष्य के लिए बहुत ही बेहतर होगा.अभी होता यही है कि आम जनता को महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ उपलब्ध  ही नहीं होती . यदि होती भी हैं तो बहुत थोड़ी या कामचलाऊ ही होती हैं. अधिक जानकारी के लिए उसे अंग्रेजी की शरण में जाने की सलाह दी जाती है. अब यह  तो हम सभी जानते ही हैं कि हमारे देश के करोंड़ों  लोगों को अपनी मातृभाषा तक में लिखना-पढ़ना नहीं आता. अंग्रेज़ी की जानकारी तो दूर की बात  है.बिना अपनी मातृभाषा को महत्त्व दिए हम कानूनी  दांवपेच को समझ नहीं पाएँगे. देश को भ्रष्टाचारियों के हाथों बस बेबस लूटता देखते रहेंगे. इसके अभाव में हम भ्रष्टाचार को कुछ समय के लिए रोक जरुर सकते हैं पर समाप्त नहीं कर सकते. होना यह चाहिए कि राष्ट्रीय सन्दर्भ में मातृभाषा और अंतर्राष्ट्रीय सन्दर्भ में अंग्रेज़ी या अन्य विदेशी भाषा का प्रयोग किया जा सकता है.राष्ट्रीय सन्दर्भ में भी  ज़रूरत के अनुसार अंग्रेज़ी का इस्तेमाल किया जा सकता है  पर सेवक के रूप में मालिक के रूप में नहीं. हम सभी  जानते हैं कि अंग्रेज़ी की संवैधानिक स्थिति एक सेविका की है स्वामिनी की नहीं . पर आज यह स्वामी बन बैठी है. यही स्थिति सभी समस्याओं की जड़  है. हिंदी के कवि भारतेंदु  ने बहुत पहले ही इस स्थिति को समझ लिया था. इसलिए उनका कहना था -- 
"निज भाषा उन्नति आहे  सब उन्नति को मूल." अर्थात  अपनी भाषा की तरक्की होने पर ही सब तरह की तरक्की संभव हो पाती है.