शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

अरविन्द केजरीवाल : एक अथक पथिक

अरविन्द केजरीवाल :एक योद्धा

उनचास दिनों तक चली अरविंद कि सरकार ने कुछ किया हो या नहीं लेकिन एक बात तो सच है कि आम जनता को जरुर जता दिया कि अगर जनता चाहे तो भ्रष्टाचारियों की  नाक में दम कर सकती है , बस चाहिए तो एक सही लीडर। केजरीवाल ने जनता के गुस्से को नेतृत्व दिया और दिल्ली  की गद्दी हासिल की. इस उपलब्धि को बहुत हलके में नहीं लेना चाहिए।यह एक बड़े बदलाव की  शुरुआत है। इसे आगे ले जाना हम सबकी जिम्मेदारी है। एक अकेले अरविन्द केजरीवाल के बस की  ये बात नहीं है। हम केवल आपस में बहस करके भ्रष्ट नेताओं पर अपना गुस्सा निकाल कर रह जाते हैं  और अपने-अपने काम में लग जाते हैं। सब ऐसे ही चलता रहता है। हम लाचार होकर मूक बने तमाशा देखते रहते है। क्योंकि भ्रष्ट नेता जानते हैं कि हम इससे ज्यादा कुछ नहीं कर सकते। तभी हज़ारों आंदोलन अपने अंजाम तक पहुँचने से पहले ही दम तोड़ देते हैं या शक्ति का प्रयोग  करके ख़त्म करवा दिए जाते है। भारत देश  की आम जनता को कानून और संविधान की टेक्निकल जानकारी नहीं होती।

 इस कारण आम जनता सही जानकारी और तर्कों के साथ अपने जनप्रतिनिधियों से सवाल नहीं पूछ पाती। जब कोई जानकारी रखने वाला व्यक्ति सत्ता के सच को आम जनता को सरल भाषा में समझाकर जागरूक करने का प्रयास करता है तो राजनीती के गलियारों में खलबली मच जाती है। जनता की समझ को सीमित रखने में अंग्रेजी भाषा का भी अहम् योगदान है। सभी अहम् जानकारियाँ अदालतों के फैसले अंग्रेजी में ही उपलब्ध हो पाते हैं। अब आम जनता को अपनी मातृभाषा तक में पढ़ने का सही मौका नहीं मिल पा रहा तो फिर अंग्रेजी सीखने -सिखाने की  किसे फिक्र है?  केजरीवाल ने जो शुरुआत की है वो बिलकुल सही है। परन्तु कुछ कमियां भी हैं।  जैसे - मीडिया से रुबरु होने वाले प्रवक्ता कई बार भावावेश में आकर ऐसी बात कह जाते हैं जिससे विरोधियों के निशाने पर आ जाते हैं, कोई भी प्रवक्ता कभी भी कुछ भी बोल देता है फिर बाद में माफ़ी माँग लेता है , आंदोलन में शामिल लोगों के बिजली के बिलों में आधी कटौती करने का फैसला भी गलत है, क्योंकि पार्टी को वोट तो लाखों ने दिया था फिर सबके बिलों में कटौती होनी चाहिए थी। दिल्ली  यूनिवर्सिटी में दिल्ली के स्टूडेंट्स को आरक्षण का फैसला भी सही नहीं कहा जा सकता। क्योंकि ऐसे कदम से पार्टी की राष्ट्रीय  सोच प्रकट नहीं होती है। सभी अस्थायी कर्मियों को तुरंत स्थायी करने का आश्वासन देना भी ठीक नहीं कहा जा सकता। दिल्ली के स्कूलों में कार्य के घंटे बढ़ाने का कदम भी उचित नहीं कहा जा सकता। हालाँकि RTE. में इसका प्रावधान है ऐसा कहा जाता है। लेकिन ज़रूरी यह है कि सरकारी स्कूलों में भी पब्लिक स्कूल जैसी सुविधाओं की  उपलब्धता को सुनिश्चित किया जाए।

काम के घंटे बढ़ाना  समस्या का  समाधान नहीं है।  इससे शिक्षकों पर अतिरिक्त दबाव बढ़ेगा। मानसिक थकान ज्यादा होने से उनकी रचनात्मक क्षमता भी प्रभावित हो सकती है। इन सब बातों का ध्यान केजरीवाल को भविष्य में रखना चाहिए। इस्तीफा देने के बाद इन बातों पर गौर करना बहुत ज़रूरी है कि आप राजनीती में थोड़ी चाणक्यनीति भी मिलाये और ऐसे लोगों को पार्टी का प्रवक्ता बनाये जोकि तर्क देने में ,बोलने में माहिर हों , भाषण शैली प्रभावशाली हो। जिनके बोलने में धाराप्रवाहिता हो ,जोश हो। जिनकी भाषा पैनी हो।

 यह सब गुण भी टिके रहने और अपना काम ईमानदारी से करने के लिए ज़रूरी हैं।बोलने की  कला में ही BSP. उत्तर प्रदेश  में पीछे रह गई  हज़ारों बेघरों को मकान देने, अपराधियों पर लगाम लगाने के बावजूद  मूर्तियां बनवाने का मुद्दा विरोधियों ने  खूब उछाल दिया और BSP. के नेता सही जवाब नहीं दे पाये। और   मात्र लैपटॉप का वादा करके सपा ने अपनी सरकार  बना ली।

 अरविंदजी , आपका इस्तीफ़ा देने का फैसला बिलकुल  सही है। समर्थन की  बैसाखी से जनलोकपाल का एवरेस्ट फतह नहीं किया जा सकता। 

भविष्य की सफलताओं के लिए मेरी शुभकामनाएं