रविवार, 12 दिसंबर 2010

DDA HOUSING SCHEME : FAYDA DDA KA YA JANTA KA ?

DDA   ने 2008 की  आवासीय योजना में400000 लोगों से लगभग ६००० करोड़ रूपये बतौर  पंजीकरण राशि  वसूले . ३ महीनों तक पैसा अपने अकाउंट में रखकर करोड़ों रुपये ब्याज के रूप में बिना कुछ लिए दिए प्राप्त किये . इस काम में अगर  किसी का फायदा हुआ तो वो थे- DDA और विभिन्न सरकारी- गैर सरकारी बैंक .दोनों ने मिलकर जमकर चाँदी काटी.
यहाँ गौर करने लायक बात यह है कि जिस देश  में  एक गरीब इंसान  लाख रुपये में अपना घर खरीदने का सपना देखने की हिम्मत भी बमुश्किल ही जुटा पाता है . उस देश की राजधानी में FLATS की न्यूनतम कीमत भी ३-५ लाख रु. रखी जाती है . और हद तो तब हो जाती है जब HIG और जनता FLATS के आवेदन के लिए एक समान पंजीकरण राशि वसूली  जाती है. 150000 रु.  यह एक  आम आदमी और उसकी गरीबी का  मज़ाक नहीं तो और क्या है ? ऐसा लगता है जैसे DDA पंजीकरण नहीं FLATS का बयाना ले रहा हो . ऐसा लगता है जैसे समाज के कमज़ोर वर्गों के प्रति DDA  का  व्यवहार सौतेला  हो गया है . कितने दुःख  की बात है कि आम किसानों कि ज़मीनों को विकास के नाम पर कौड़ियों के दाम पर  अधिग्रहित कर लिया जाता है . और बाद में सोने के भाव बेच दिया जाता है .जिसकी ज़मीन थी ,वो किसी इमारत का चौकीदार बनकर रह जाता है .DDA की जिम्मेदारी है कि वह उचित कीमत पर समाज के प्रत्येक वर्ग को आवास मुहैया करवाए .और DDA क्या कर रहा है ये हम सभी जानते हैं .  DDA मुनाफाखोरी  के रास्ते पर चलते हुए अपने उद्देश्यों से भटक गया है .इसका ताज़ा उदाहरण DDA की आवासीय योजना- 2010 में देखा जा सकता है .कहने को तो DDA ने इस बार पंजीकरण राशि  कुछ मामलों में ५०००० रु. भी रखी है . पर ये FLATS   नाममात्र ही है . जबकि न्यायसंगत यह  होता कि एक कमरे वाले सभी आवासों की पंजीकरण राशि 50000 रु. रखी जाती. अब भला DDA ऐसा क्यों करने लगा उसे तो अपने ब्याज से मतलब है. आप कहीं से भी इंतजाम कीजिए उसे इस बात से कोई सरोकार नहीं . 
आप इतनी बड़ी राशि बैंक से लोन लेंगें तो बैंक का फायदा ,DDA के पास  तीन महीने तक पैसा रहेगा तो उसका भी फायदा ही  होगा . अब आप हिसाब लगाकर खुद ही देख लीजिए कि लगभग 15000 FLATS की
पंजीकरण  राशि को जमा हुए FORMS की संख्या से गुणा  करके देख लीजिए. उसके बाद उस जमा राशि पर ३ महीनों में मिलने वाले साधारण ब्याज की गणना कीजिए .आप जान पाएंगे कि यह ब्याज लाखों में नहीं, करोड़ों में है . वास्तव में होना यह चाहिए  कि HIG FLATS से ऊपर के सभी FLATS की पंजीकरण राशि १५०००० रु. और उससे निम्न श्रेणी  के FLATS  की २००००रु. तक ही रखी जाए तो आम  जनता के लिए यह  काफी  राहत की बात होगी. वैसे भी यह राशि मात्र DRAW  में शामिल होने के लिए ही तो है. और DRAW  में शामिल करने के लिए इतनी बड़ी राशि लेने का कारण   मेरे गले तो नहीं उतरता .बाकि जो DRAW में सफल होगा वो तो पूरी कीमत का भुगतान करेगा ही .फिर बिना वजह केवल आवेदन  के रूप में इतनी बड़ी राशि लेने के औचित्य पर DDA और आवास मुहैया करवाने वाली अन्य  राजकीय  संस्थाओं को पुनर्विचार करना चाहिए. जिससे कि आम जनता के हितों की अनदेखी न हो और प्रशासन में जनता 
की आस्था कायम रहे . 



MEDIA AUR USKA BACHCHON PAR PRABHAV

आज कल प्रसारित होने वाले विभिन्न सीरियल भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात कर रहें हैं। आज के समय में गिने- चुने सीरियल ही होंगे जिन्हें हम सपरिवार देख सकते हैंज्यादातर टी वी सीरियल टी आर पी की अंधी दौड़ में ही शामिल दिखाई दे रहे हैं। भारतीय आदर्शवादिता से उनका कोई सरोकार नहीं है। बिग बॉस , राखी का इन्साफ सरीखे सीरियल हमारे बच्चों की भाषा को भ्रष्ट कर उन्हें अश्लीलता की ओर ले जा रहें हैं और हम मूक दर्शक बने ये सब होता देख रहे हैंहमें अपने बच्चों के साथ अधिक से अधिक समय बिताने की कोशिश करनी चाहिए जिससे कि उन्हें उचित संस्कार मिल सकेबच्चों के साथ हमारा जितना ज्यादा संवाद होता है हम अपने बच्चों की मुश्किलों को उतना ही बेहतर तरीके से समझ पाते हैंहर बच्चे में कोई कोई खास बात ज़रूर होती है

उस खास बात को पहचानना और उसको विकास का वातावरण देना ,ये एक श्रमसाध्य और असीमित धैर्य की अपेक्षा रखने वाला कार्य हैंयहीं से प्रत्येक भविष्य निर्माता की जिम्मेदारी की शुरुआत होती हैजब हमारा संवाद बच्चों से नहीं हो पाता तब वे अभिव्यक्ति के दूसरे विकल्पों का रुख करते हैंकई बार ये विकल्प सकारात्मक  की अपेक्षा नकारात्मक भी हो सकते हैंइलेक्ट्रोनिक माध्यम से जब बच्चा अपनी अभिव्यक्ति खोजता है तब प्रायः ये देखने में आया है कि कुछ शातिर किस्म के लोग हमारे फूल जैसे बच्चों की कोमल भावनाओं का गलत इस्तेमाल करते हैंपारिवारिक टूटन ,षड़यंत्र और अश्लीलता परोसने वाले सीरियल हमारे बच्चों की विकासोन्मुख मानसिकता पर विपरीत प्रभाव डालते हैंमीडिया द्वारा सृजित इस जाल से बचने के लिए बच्चों को विवेक वयस्कता की आवश्यकता होती हैंजिससे बच्चे उचित- अनुचित का फर्क करने में सक्षम हो सकें

JEEVAN KA SACH

  


  • जीवन का आनंद गौरव के साथ , सम्मान के साथ और स्वाभिमान के साथ  जीने में है .
  • उस व्यक्ति से अधिक गरीब कोई और नहीं जिसके पास केवल धन है --
  • श्रेष्ठ व्यक्ति शब्द में सुस्त और कार्य में चुस्त होते हैं .
  •  जिस वृक्ष में जितने अधिक फल लगे होते हैं ,वह उतना ही अधिक    झुका  हुआ होता है .
  •  आलस्य  और सफलता एक साथ नहीं रह सकते .                   
  • अभागा वह है जो संसार के सबसे पवित्र धर्म कृतज्ञता को भूल जाता    है  .
  • अहंकारी व्यक्ति केवल अपने ही महान कार्यों का वर्णन करता है और  दूसरों के केवल बुरे कर्मों का . ----------स्पिनोजा  
  •  संसार का सबसे मुश्किल कार्य स्वयं को जानना है .
  • कम बोलना और अधिक सुनना श्रेष्ठ ज्ञानियों के लक्षण हैं .
  •  जब लगे कि हम  बहुत  दुखी हैं, तब हमें अपने से निम्नस्तर की ओर         देखना चाहिए .तब हमें अपना दुःख बहुत छोटा लगने लगेगा .
  • संसार के सबसे अभागे व्यक्ति वो होते हैं जिनके दुःख में कोई दुखी नहीं होता .
  • सदैव याद रखें कि ईश्वर प्रतिमा में नहीं हमारी पवित्र भावनाओं में निवास करता है
  • आप वही हैं जो आप अपने बारे में सोचते हैं ,आपकी सोच आपके कर्म और व्यवहार में प्रतिबिंबित होती है ,धीरे-धीरे दुनिया आपके बारे में वही सोचने लगती है जो आप स्वयं अपने बारे में सोचते हैं ..
  •  सदैव प्रयत्न करने वाले के जीवन में आशा ही आशा है .  
  •  सदैव याद रखें बड़े-बजुर्गों के आशीर्वाद और अनुभवों से हम बड़ी से  बड़ी मुश्किल पर भी विजय प्राप्त कर सकते हैं.
  • सदैव याद रखना चाहिए कि बुज़ुर्ग जीवन के विस्तृत अनुभवों और संस्कारों की अमूल्य निधि हैं .

बुधवार, 1 दिसंबर 2010

GYAN AUR SHIKSHA

'ज्ञान और शिक्षा   ' सुनने  में  ये  दोनों  शब्द  एक  जैसे  लगते  हैं  .लेकिन  दोनों  में  बहुत  फर्क  है .जो  ज्ञान  है  जरुरी  नहीं  कि वो  शिक्षा  भी  हो  .ज्ञान  कोई  भी  व्यक्ति  कहीं  से भी  प्राप्त कर  सकता  है . मिसाल  के  तौर  पर - पुस्तकों  से , सुनकर , इन्टरनेट  के  माध्यम  से. मगर  ये  महज  ज्ञान  ही  है  शिक्षा  नहीं . ज्ञान  जब  वैद्य   हो  जाता  है  तब  ये  शिक्षा  का  रूप  ग्रहण  कर  लेता  है . और  इस  ज्ञान  को  वैद्यता  प्रदान  करता  है  उस  विषय  का  विशेषज्ञ .यानि  कि  गुरु . इसीलिए  कहा  जाता  है  कि  बिना  गुरू के ज्ञान  अधूरा  होता है .इसका  कारण है  कि  पुस्तकों  में  या  ज्ञान प्राप्ति    के अन्य  माध्यमों  से प्राप्त  ज्ञान वास्तविक  है  या  निराधार  ? इसका  निर्धारण  आप  नहीं  कर  सकते .
ज्ञान  सही  है  या  गलत  है  ,प्राप्त  सूचना  सत्य  है  या  असत्य ? इसका  फैसला  शिक्षार्थी  के  लिए  करना आसान   नहीं  होता . अधूरे  ज्ञान  के  सहारे  आप  तरक्की  के  रास्ते   नहीं  तय  कर  सकते  . अगर  चल  भी  दिए  तो  रास्ते  में  लगने  वाले  थपेड़ों  से  आप  मुकाबला  नहीं  कर  पाएंगे  .क्योंकि  इस  ज्ञान  में  मुश्किलों  का  सामना  कर  पाने  की  सामर्थ्य  नहीं  होती . कारण साफ़  है  .ये  ज्ञान  आपकी  ग्रहण  क्षमता  एवं  रूचि  का  ही  विस्तार  है . इस  ज्ञान  की  सीमाएं  और  संभावनाएं  आपकी  सीमाएं  और  संभावनाएं  हैं  . कहने  का  तात्पर्य  ये  है  कि ये ज्ञान  एकतरफा  है . इसकी  वैद्यता संदिग्ध  है  . इस  संदिग्ध ज्ञान  के  सहारे  विद्वता  का  दंभ  भरना  निरी  मूर्खता  है .कितने  ही  लोग  हमें  मिल  जायेंगे  जिनके  पास  मात्र  ज्ञान  ही  होता  है  . लेकिन  वह यह   नहीं  बता  सकते  कि  उनका  ज्ञान  कितना  सही  है  और  कितना  गलत . यही  उनके  ज्ञान  की सीमा  है . सामान्य  लोगों  के  बीच  ऐसा  व्यक्ति  भले  ही  खुद  को  ज्ञानी  साबित  करने  में  थोडा -बहुत  कामियाब  हो  जाये . लेकिन  जैसे  ही  उसका  सामना   विषय - विशेषज्ञ   यानि  कि गुरु  से  होता  है . उसे  अपनी  अज्ञानता  का  अनुभव  होता  है . कहने  का  तात्पर्य  है  कि  बिना  गुरु  के  हम  पढ़  तो  सकते  हैं  परन्तु  पढ़े  हुए  के अर्थ  की सत्यता  और  गहनता  को  अनुभव नहीं  कर  सकते. क्योंकि शिक्षा वास्तव में गुरु द्वारा छात्रों का भविष्य- निर्माण , विविध परिस्थितियों में उन्हें व्यवहारकुशल बनाना और उनका चारित्रिक विकास सुनिश्चित करना है .मात्र अच्छे अंक प्राप्त कर लेना ही शिक्षा नहीं है . अच्छे अंकों के साथ हमारे व्यवहार  में विनम्रता ,वाणी में मधुरता ,बड़े बुजुर्गों और गुरुजनों के प्रति मन में सम्मान की भावना ,जरुरतमंदों के प्रति कर्त्तव्य और दया की भावना , अपने राष्ट्र के प्रति गर्व और राष्ट्रीयता की भावना यदि हमारे मन में है तभी हम वास्तव में स्वयं को 'शिक्षित'  विशेषण से विभूषित कर सकते हैं. और इस अवस्था तक पहुँचाने में गुरु का योगदान अविस्मरणीय है .
बड़े  से  बड़े  ज्ञानी  भी  गुरु  की  महिमा  का  बखान  करते  नहीं  थकते . चाहे  वह   कबीर  हो  , तानसेन  हों , बैजू  बावरा हो  या  अन्य  कोई  महापुरुष  . कबीरदास  ने  कहा  है  कि गुरु  एक  कुम्हार  की  तरह  होता  है  और  शिष्य  एक  घड़े  की  तरह  . जिस  प्रकार  कुम्हार  घड़ा  बनाते  समय  उसे  सही  आकार  देने  के  लिए  बाहर   से  भले  ही  कठोरता बरते , लेकिन  अन्दर  से  उसे  आलम्ब   ही  देता  है  कि  कहीं  घड़ा  टूट  न  जाये  .उसी  प्रकार  गुरु  भी  बेशक  बाहर   से  थोडा  कठोर  हो  परन्तु  उसके  ह्रदय  में  अपने  शिष्यों  के  लिए  अपार  स्नेह  का  सागर  हिलोरे  मार  रहा  होता  है . उस  गुरु  के  लिए  अपने  ह्रदय  में  बैर  भाव  रखना मात्र  कोरे  ज्ञान  का  परिचायक  है शिक्षा  का  नहीं  . मात्र  ज्ञानी  होने  से  अहम्   बढ़ता  है . मैं  की  भावना  ह्रदय  में  बलवती  होती  है  .जबकि  शिक्षा  आपके  ह्रदय  का  विस्तार  करती  है  .लोभ , लालच , स्वार्थ  आदि  से  दूर  करती  है . अनुज  के  प्रति  प्रेम  और  अग्रजनों  के  लिए   ह्रदय  में  आदर  का  संचरण  करती  है . यह  शिक्षा का अप्रतिम लक्षण है . ज्ञान  दिखाना  पड़ता  है  जबकि  शिक्षा  अनायास  ही  आपके  व्यवहार  से  प्रकट  हो  जाती  है  .
महापुरुषों  ने  तो  यहाँ  तक  कहा  है  कि बिना गुरु  के  ज्ञान  कभी भी प्रमाणिक  नहीं  हो सकता  .जिस  प्रकार  पुष्प  की सुगंध  से  उसके  स्वरुप  का  पता  चलता  है  ,उसी प्रकार से  मनुष्य  के  आचरण  से  उसके  शिक्षित  होने  का  पता  चलता  है  . ज्ञान  क्षणिक  भी  हो  सकता  है  परन्तु  शिक्षा  सदैव  शाश्वत  होती  है . ज्ञान  संशय  है  तो  शिक्षा  निर्णय  है . इसलिए  शिक्षित  बनिए  मात्र  ज्ञानी  नहीं .

सोमवार, 29 नवंबर 2010

APNE APNE NAHIN

APNE APNE NAHIN GAIRON KI BAAT REHNE DO
KOI SAMJHE KI NAHIN DIL KI BAAT KEHNE DO

KAL THE JINKE LIYE HUM RAUNAKE-MEHFIL KI TARAH
AAJ HUM HO GAYE UNKE LIYE PATTHAR KI TARAH

UNKI AANKHON MEIN NA AANSOO KABHI AANE PAYE
ASHK AANKHON SE MERI BAHTE HAIN TO BAHNE DO

HUMNE APNON KE LIYE GHAM HAIN BESHUMAAR SAHE
WAQT BADLA TO YE APNE MERE APNE NA RAHE

KOI PAGAL KAHE MUJHKO TO AAJ KEHNE DO.
APNE APNE NAHIN GAIRON KI BAAT REHNE DO..................... SURENDRA MUNTZIR


शनिवार, 27 नवंबर 2010

CHCHLAVA

भाषा  का  गहन  अर्थ  समझे  बिना  अभिव्यक्ति  मात्र  छलावा  हो  सकती  है .

शिक्षा  और  ज्ञान  में  अंतर  समझे  बिना  शिक्षा  मात्र  झूठा  दिलासा  हो  सकती  है .

दूसरों  के  सुखों  पर  दुखी  होने  और  दूसरों  के  दुखों  पर  सुखी  होने  से  मनुष्यता  मात्र  छलावा  हो  सकती  है  .

बिना  लक्ष्य  ज़िन्दगी  बसर  करने  से  ज़िन्दगी  मात्र  छलावा  हो  सकती  है  .

दूसरों  में  कमियां  और  स्वयं  में  सम्पूर्णता  ढूँढने  से  प्रगति  मात्र  छलावा  हो  सकती  है .

केवल  धन  के  पीछे भागते  रहने  से  खुशियाँ  मात्र  छलावा  हो  सकती  हैं .

दूसरों  को  दुःख  देकर  चैन  से  सोने  से  नींद  मात्र  छलावा  हो  सकती  है .

अदृश्य  से  प्रेम  और  प्रत्यक्ष  का अनादर  करने  से  ईश्वर की भक्ति  मात्र  छलावा  हो  सकती  है .



शनिवार, 7 अगस्त 2010

MEDIA KI SAMAJIK JIMMEDARI

Badnami ke bhi, bhai apne hi fayde hote hain.tabhi to PRATIGYA ki ROLI ka role star plus ne mauke ka fayda uthane ke liye fauran badha diya. ise hi kehte hain badnam honge to kya naam bhi na hoga. is tarah ke fasad khade karke pulicity lene ke mamle rakhisamantiya parampara mein badhte hi ja rahe hain.ab to har chutbhaiye celebrity ko lokpriyta paane ka ye sabse sasta aur kargar tareeka lagta hai.ek din pehle jo SAHRISH media ke samne ro rahi thi, star plus se role badhaye jane ki baat jankar phooli nahin sama rahi thi.sajag darshko ko is tarah ki paramra ko bhunane wale dharawahiko ko badhawa nahin dena chahiye kyonki isse samaj mein galat messege jata hai.hamare bachche bhi is tarah ke vivad school-colleges mein khade karke sasti lokpriyta pane ki koshish kar sakte hain.jiska fayde-nuksaan hum bakhoobi samajh sakte hain. kyonki jab hum vivadit vyakti ke programes ko aur adhik tavajjo dene lagte hain tab kahin na kahin unke dwara kiye gaye tathakathit karya ko apni samajik sahmati de rahe hote hain.media ko bhi samajik jimmedari nibhate hue ese mamlon ko bahut zyada tool nahin dena chahiye.ek-aadh baar dikhakar janhit ki khabron ki or hi rukh karna chahiye.print aur electronic media ke content ka janta par seedha asar padta hai. iske alava deshvirodhi bhashan denewale,desh ekta akhandata ke liye khatra ban sakne wale logon ka bahut adhik mahimamandan nahin karna chahiye.yadi sambhav ho sake to ,aise logon ka vedio ya pecture bhi nahi dikhana chahiye,jisse ki un logon ki vivad khadakar lokpriya hone ki mansha ko bal na mil sake. aise logon aur unke dwara diye ja rahe deshvirodhi bayanon ko adhik coverage dekar media aise deshdrohiyon ka upkarak banta ja raha hai.yahi log desh ki ekta akhandata ke liye sabse bada khatra bankar bhavishya mein ubhrehge.TRP KE KHEL MEIN MEDIA APNI SAMAJIK JAWABDEHI KO NAZARANDAZ NAHIN KAR SAKTA ANYATHA LOKTANTRA KA TEESRA STAMBH HONE KI USKI GARIMA JABARDAST DHAKKA LAGEGA. aaj sacchai ye hai ki lokhit mein tan ,man,dhan se sahyog karke koi neta nahin banna chahta keval zubani jama-kharch karke tarkheen bhashan dekar hi neta log barabar charcha mein bane rehna chahte hain .aur media aise logon ki ichchaon ko asani se pura kar deta hai.vastav mein media ko vaikalpik media ki tarah samaj ki or dekhna chahiye na ki vyavsayik media ki tarah .TABHI MEDIA KA MADHYAM NAAM SARTHAK HO SAKEGA.

BADNAMI KE FAYDE

sahrish jahangir mamle se ek baat to saamne aa gai hai ki badnami ke bhi apne fayde hain,tabhi to mamle ka fayda uthane mein star plus bhi peeche nahin raha .fauran PRATIGYA meinROLI ke role ko badhane ka elan kar diya

गुरुवार, 5 अगस्त 2010

मेहनत के पथ पर



                  गीत 
मेहनत के पथ पे चलकर सबकुछ तुझे मिलेगा .
उजड़ा हुआ ये गुलशन इक बार फिर खिलेगा .
किसी और के सहारे खुद न छोड़ हमदम
कहते हैं जिसको दुनिया नहीं बांटती कभी गम .
मत सोच मुश्किलों में कोई तुझको थाम लेगा .
मेहनत के पथ पे चलकर ----------
मंजिल है दूर लेकिन ,है रास्ता कठिन भी .
काँटों पे हंसके चलना है वक़्त का चलन भी .
विश्वाश रख खुदा पे मेहनत का फल मिलेगा .
मेहनत के पथ पे चलकर सबकुछ तुझे मिलेगा 
उजड़ा हुआ ये गुलशन एक बार फिर खिलेगा .
MERA MANNA HAI KI KISI BHI SARKAR KE KARYAKAL KE ANTIM 5-6 MAHINON MEIN JANTA KO ADHIK SAJAGTA KA PARICHAY DENA CHAHIYE ,KYONKI YAHI WO WAQT HOTA HAI JAB SATTA MEIN KABIZ DAL EK BAAR PHIR JANTA KO BARGLANE KI KOSHISH KARTA HAI.KAGZI UPLABDHIYON KO BADHA-CHADHAKAR PESH KIYA JATA HAI TAKI ANE WALE 4.5 SALON KE LIYE APNI SEAT BOOK KARAI JA SAKE. YADI IN ANTIM 5-6 MAHINON KO JANTA NAZARANDAZ KARKE PICHLE 4.5 VARSHON MEIN SATTADHARI DAL NE KYA KIYA HAI,IS PAR DHYAN DE TO LOKTANTRA KA SAHI MATLAB NETAON KO SAMAJH AA JAYEGA.ZYADATAR HOTA YAHI HAI KI SATTADHARI DAL JANTA KE DIMAG SE APNI KHARAB CHCHAVI HATANA CHAHTE HAIN ,ISILIYE KARYAKAL KE ANTIM PADAV PAR NIRMAN AUR JANHIT KE KARYA KAM SHILANYAS ,GHOSHDAYEN ZYADA HOTI HAIN,JINKO DUBARA SATTA MEIN AANE PAR POORA KARNE KI BAAT KAHI JAATI HAI.SATTA MEIN AATE HI SAARI YOJNAEN LALFEETASHAHI KA SHIKAR HO JAATI HAIN.JANTA EK BAAR PHIR KHUD KO DHAGA HUA MAHSOOS KARTI HAI.BHAIYA,JAB BOYA PED BABOOL KA TO AAM KAHAN SE KAAY ?

सोमवार, 2 अगस्त 2010

YUN TO MILTE HAIN

                 GHAZAL


यूँ तो  मिलते  हैं  ज़माने  में  यूँ  मिलने  वाले 
नहीं  मिलते  दिल -ए-ज़ज्बात  समझने  वाले 
जो  तेरे  पास  ये  दौलत  है  तो  ये  दुनिया  है 
नहीं  दौलत  तो  लें  मुंह  फेर  ये  मिलने  वाले 
नहीं  मरहम  तेरे  ज़ख्मों  पे  लगाये  कोई 
मिलेंगे  लाख  तेरे  हाल पे  हंसने  वाले 
तेरे  जीवन  में  तेरा  साथ  न  देगा  कोई 
आयेंगे  लाख  तेरी  लाश  पे  रोने  वाले 
यूँ  तो  मिलते  हैं  ज़माने  में  यूँ  मिलने  वाले  -