सोमवार, 29 नवंबर 2010

APNE APNE NAHIN

APNE APNE NAHIN GAIRON KI BAAT REHNE DO
KOI SAMJHE KI NAHIN DIL KI BAAT KEHNE DO

KAL THE JINKE LIYE HUM RAUNAKE-MEHFIL KI TARAH
AAJ HUM HO GAYE UNKE LIYE PATTHAR KI TARAH

UNKI AANKHON MEIN NA AANSOO KABHI AANE PAYE
ASHK AANKHON SE MERI BAHTE HAIN TO BAHNE DO

HUMNE APNON KE LIYE GHAM HAIN BESHUMAAR SAHE
WAQT BADLA TO YE APNE MERE APNE NA RAHE

KOI PAGAL KAHE MUJHKO TO AAJ KEHNE DO.
APNE APNE NAHIN GAIRON KI BAAT REHNE DO..................... SURENDRA MUNTZIR


शनिवार, 27 नवंबर 2010

CHCHLAVA

भाषा  का  गहन  अर्थ  समझे  बिना  अभिव्यक्ति  मात्र  छलावा  हो  सकती  है .

शिक्षा  और  ज्ञान  में  अंतर  समझे  बिना  शिक्षा  मात्र  झूठा  दिलासा  हो  सकती  है .

दूसरों  के  सुखों  पर  दुखी  होने  और  दूसरों  के  दुखों  पर  सुखी  होने  से  मनुष्यता  मात्र  छलावा  हो  सकती  है  .

बिना  लक्ष्य  ज़िन्दगी  बसर  करने  से  ज़िन्दगी  मात्र  छलावा  हो  सकती  है  .

दूसरों  में  कमियां  और  स्वयं  में  सम्पूर्णता  ढूँढने  से  प्रगति  मात्र  छलावा  हो  सकती  है .

केवल  धन  के  पीछे भागते  रहने  से  खुशियाँ  मात्र  छलावा  हो  सकती  हैं .

दूसरों  को  दुःख  देकर  चैन  से  सोने  से  नींद  मात्र  छलावा  हो  सकती  है .

अदृश्य  से  प्रेम  और  प्रत्यक्ष  का अनादर  करने  से  ईश्वर की भक्ति  मात्र  छलावा  हो  सकती  है .