बदलाव का आगाज़
दिल्ली में आम आदमी पार्टी को मिला जनसमर्थन किसी बड़े राजनीतिक
बदलाव की ओर संकेत है। ये इस बात की ओर इशारा है कि अभी तक जनता दो में से किसी एक को ही चुनती आ रही थी , चाहे उसे दोनों पसंद हो या नहीं। क्योंकि जनता के पास अन्य ईमानदार विकल्प ही मौजूद नहीं थे। लेकिन जैसे ही उसे विकल्प मिला उसने (जनता ने) अपनी वास्तविक इच्छा जाहिर कर दी। दिल्ली का चुनाव परिणाम इस दृष्टि से भी महत्त्व पूर्ण है कि न्यूनतम साधनों से भी अधिकतम परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं। चुनावों में बढ़ते धन और बल के प्रभाव के बीच आम आदमी पार्टी की शानदार उपस्थिति राजनीति को एक नयी दिशा देती है।
जो जनता खुले तौर पर अपना गुस्सा प्रकट नहीं कर पा रही थी उसे अपने गुस्से की अभिव्यक्ति के लिए एक विकल्प मिल गया है। उम्मीद है यह बदलाव ईमानदार और ईमानदारी को साथ लेकर चलते हुए दिल्ली से आगे राष्ट्रीय स्तर पर भी व्यापक जनसमर्थन जुटाते हुए एक नए भारत का निर्माण करेगा। आज भारत इंडिया और भारत में बँट गया है। एक शासक और दूसरा शासित की भूमिका में है। दोनों के बीच दूरी बढ़ती ही जा रही है। आज इस दूरी को समाप्त करने की ज़रूरत है। आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी भारत शिक्षा,स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं पर भी काबू नहीं कर पाया क्योंकि देश में जो विकास हुआ वह देश केंद्रित कम और चुनाव केंद्रित ज्यादा रहा। यह हम सभी जानते है कि देश केंद्रित विकास चुनाव के पांचों वर्ष सामान रूप से चलता रहता है जबकि चुनाव केंद्रित विकास चुनाव के नजदीक आते ही शुरू होता है बाकी समय उसे देश से कुछ लेना-देना नहीं होता।जनता को भी चाहिए कि चुनाव के समय व्यक्ति को देखे पार्टी को नहीं। पार्टी को देखते समय हम भावनाओं में भी बह सकते हैं। इसलिए दिमाग से काम लेने की ज़रूरत है। देश की जनता को पता होना चाहिये कि राजनेता चुनाव जीतने के लिए अपने तेज़ दिमाग का ही इस्तेमाल कर जीत हासिल करने की रणनीतियां बनाते हैं। और जनता से भावुक होकर मतदान करने की उम्मीद करते है। जनता को भी चाहिए कि वह वह भावनाओं में न बहकर भाषा,जाति ,धर्म ,संप्रदाय ,अमीर -गरीब की सोच से ऊपर उठकर एक जिम्मेदार ,समझदार भारतीय होने का गौरव धारण करते हुए अपने दिल की नहीं दिमाग की सुनते हुए सही व्यक्ति को अपना जनप्रतिनिधि चुने। प्रमाण के तौर पर आप तीस-चालीस वर्ष पुरानी कोई भी मूवी देख लीजिये आपको महँगाई और भ्रष्टाचार से त्रस्त आम आदमी की पीड़ा सुनाई दे जायेगी। और आज भी आम आदमी इसी से परेशान हैं। तो क्या परिवर्तन हुआ इतने वर्षों में ? आप खुद ही सोच लीजिये। अब भावनाओं में बहने की नहीं दिमाग से सही फैसले का समय है। अब मौन रहने का नहीं, सवाल करने का समय है।
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