बुधवार, 6 अप्रैल 2011

Saath Nibhana Saathiya : stree ki adarsh chavi par ek sawaliya nishan

स्टार प्लस का यह धारावाहिक भारतीय संस्कृति पर एक कलंक है .इस तरह के धारावाहिकों को प्रसारण की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए .यह धारावाहिक लगातार स्त्री की नकारात्मक छवि को ही दिखाता रहता है . इस तरह के धारावाहिक समाज में स्त्रियों की गलत छवि प्रस्तुत करते हैं .माना कि समाज में कुछ स्त्रियाँ  कूटनीति ,षड़यंत्र में भी शामिल है .पर इसका यह मतलब तो नहीं कि कुछ प्रतिशत स्त्रियों की नकारात्मकता का खामियाजा असंख्य स्त्रियों को भुगतना पड़े ? यह भारतीय समाज के लिए बिलकुल भी उचित नहीं कहा जा सकता .इस तरह के धारावाहिकों में स्त्री की आदर्श छवि को दरकिनार कर षड़यंत्र और राजनीति करती स्त्री को ही टी आर  पी की दौड़ में superhit फार्मूला माना जा रहा है .ऐसे धारावाहिक समाज में स्त्रियों के प्रति नकारात्मक सन्देश को प्रसारित करते हैं .जिससे  परिवार में स्त्रियों के  आदर और अहमियत में कमी  आ सकती है और  परिवार टूट  सकते हैं .हद तो तब हो जाती है जब बात को कुछ ज्यादा ही बढ़ा -चढ़ाकर पेश किया जाता है .चलो मान भी लेते हैं कि समाज में ऐसा होता तो मीडिया का फ़र्ज़ हैं वह उसको ज्यादा तूल न देकर उसका इस्तेमाल समाज का परिष्कार करने के लिए करे, न कि छोटी बात को ही धारावाहिक में लम्बा खींच दिया जाये .यह सर्वविदित है कि  मीडिया की सामग्री का लोग अनुकरण करते है .मीडिया चरित्रों  को वो अपना आदर्श मानकर चलते हैं और उन्हीं के जैसा आचरण करने का दिन -रात प्रयास करते हैं .इसलिए अपने फ़र्ज़ को ध्यान में रखते हुए मीडिया को ऐसे चरित्र गढ़ने चाहिए जो समाज को सही दिशा दे सकें .केवल टी आर  पी के लिए धारावाहिकों के कंटेंट को सत्य से दूर बढ़ा-चढ़ाकर ,तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करना  भारतीय सामाजिक व्यस्था को गर्त में धकेलने जैसा है.भारतीय  काव्यशास्त्र साहित्य के कई प्रयोजन बताये गए हैं  जैसे धर्म ,अर्थ , काम ,मोक्ष .आज मीडिया को  धर्म और मोक्ष से कुछ लेना देना नहीं रह गया .आज के मनोरंजन चैनल केवल अर्थ (धन) को ही अपना प्रयोजन या उद्देश्य मान बैठे हैं .

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