शनिवार, 23 जुलाई 2011

SHIKSHA KA ADHIKAR

हमारे देश में सरकारी विद्यालयों की हालत किसी से छिपी नहीं है. प्रत्येक SECTION में ७०-८० बच्चे होना आम बात है .ऐसे में किस प्रकार एक शिक्षक प्रत्येक बच्चे पर सही तरीके से ध्यान दे पायेगा , इसका अंदाज़ा सहज ही लगाया जा सकता है.आमतौर पर प्रत्येक शिक्षक को 5 SECTION मिलते हैं .अब यदि एक SECTION में ७०-८० बच्चे हों तो प्रत्येक शिक्षक के पास ३५०-४०० बच्चे होंगे .उन बच्चों का रिकॉर्ड रखना,उनकी अभ्यास पुस्तिकाएँ जाँचना आदि कार्य उसे करने होते हैं.इसके आलावा छात्रों के समुचित विकास के लिए पाठ सहगामी क्रियाएँ भी आवश्यक होती हैं .इतना सारा काम और प्रत्येक बच्चे का समुचित आंकलन कर पाना लगभग असंभव है .फिर भी   सरकार को शिक्षकों की भर्ती और छात्र -शिक्षक के आदर्श अनुपात को सुनिश्चित करने में  कोई चिंता  नहीं लगती.जो कि RTE के लिए गंभीर स्थिति है. शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया में ही बरसों लग जाते हैं . अब TET के बाद  शिक्षकों की और भी किल्लत हो सकती है .एक तरफ सरकार का तर्क है कि नौकरी है पर शिक्षक नहीं मिलते दूसरी तरफ TET के बाद तो शिक्षकों कि संख्या और भी सीमित हो जाएगी.क्या  सारी जिम्मेदारी शिक्षकों की ही है कि वो लगातार अपनी योग्यताओं को प्रमाणित करते रहें .वास्तविकता तो ये है कि जब तक नियुक्ति परीक्षाओं में नकारात्मक अंकन नहीं होगा तब  तक शिक्षा के क्षेत्र  में मात्र तुक्का  लगाने  वाले और स्पीड टेस्ट में माहिर लोग ही जमे रहेंगे. CTET  के माध्यम से शिक्षकों को योग्य मानने वाले क्या ज़रा बताएँगे कि मात्र ९० मिनट  में किस प्रकार सही तरीके से  १५० सवाल हल किये जा सकते हैं ? मतलब प्रत्येक सवाल के लिए मात्र 36 सेकंड का वक्त  .और प्रश्न भी ऐसे कि जिनमें बड़े-बड़े पैराग्राफ भी शामिल हैं . अब ऐसे में क्या कोई अपनी योग्यता प्रमाणित करने के लिए बुध्दि लगाएगा  या तुक्का ?यदि बुध्धि लगाये तो  प्रश्न छूटें और अगर तुक्का लगाये तो उसकी  योग्यता  ही संदेह  के घेरे में आ  जाये  .शिक्षकों की योग्यता को सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी है कि प्रश्नपत्रों में नकारात्मक अंकन किया जाये .यदि नकारात्मक अंकन होगा तो वही व्यक्ति चुना जायेगा जिसको विषय का पूर्ण ज्ञान होगा  न कि तुक्का लगाने वाला .साथ ही ज़रूरी नहीं कि जो व्यक्ति अच्छा  लिख सकता है बड़े-बड़े उत्तर दे सकता है वह अच्छा शिक्षक भी हो  .यह  तो स्पीड टेस्ट है निर्धारित  समय में जिसने लिख दिया वो योग्य हो गया और  जो नहीं लिख पाया वो अयोग्य.अब दूसरा पहलू भी देखते हैं कई बार किसी के पास दुनिया भर का ज्ञान होता है और वह एक कुशल वक्ता भी होता है.परन्तु स्पीड टेस्ट में वह निर्धारित समय में लिख नहीं पाता और उसकी सारी काबिलियत पर प्रश्नचिह्न लग जाता है.CCE में तो बच्चों के लिए प्रावधान कर दिया गया कि वह FORMATIVE
ASSESSMENT ( रचनात्मक आंकलन) जिसमें कि लिखने  का कम और बोलने का एवं करने का कार्य अधिक  है में अच्छे  अंक प्राप्त कर अपनी योग्यता प्रमाणित कर सकता है. शिक्षकों कि नियुक्ति के सन्दर्भ में भी यही व्यवस्था लागू  की जा सकती है जिसमें विषय से सम्बंधित बहुवैकल्पिक प्रश्न दिए जा सकते हैं .साथ ही इसमें नकारात्मक अंकन अवश्य हो जिससे उपर्युक्त योग्यता रखने वाले व्यक्ति एवं विषय ज्ञान रखने वाले योग्य व्यक्ति ही चुने  जा सकेंगे. जो कि शिक्षा और शिक्षार्थियों  के लिए बेहतर स्थिति हो सकती है. उदाहरण के लिए पब्लिक SCHOOLS में  मात्र साधारण परीक्षा एवं साक्षात्कार  के आधार पर योग्य शिक्षक नियुक्त किये जाते हैं . और उनकी शिक्षा  की गुणवत्ता किसी से छुपी नहीं है. वहाँ सबसे अधिक ध्यान व्यक्ति के व्यावहारिक ज्ञान पर दिया जाता है, सिद्धांतों पर नहीं. ज़रूरत इच्छाशक्ति की है और सही रूप से प्रावधानों को लागू  करने की. AAJ शिक्षा को सिद्धांतों  की नहीं व्यवहार  की ज़रूरत है. जब तक लोग अपने निजी स्वार्थ को  त्याग कर देश के  लिए  नहीं सोचेंगे ,देश से प्रेम नहीं करेंगे तब तक योजनाओं के अपेक्षित परिणाम शायद ही मिल सकेंगे.

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