रविवार, 12 दिसंबर 2010

MEDIA AUR USKA BACHCHON PAR PRABHAV

आज कल प्रसारित होने वाले विभिन्न सीरियल भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात कर रहें हैं। आज के समय में गिने- चुने सीरियल ही होंगे जिन्हें हम सपरिवार देख सकते हैंज्यादातर टी वी सीरियल टी आर पी की अंधी दौड़ में ही शामिल दिखाई दे रहे हैं। भारतीय आदर्शवादिता से उनका कोई सरोकार नहीं है। बिग बॉस , राखी का इन्साफ सरीखे सीरियल हमारे बच्चों की भाषा को भ्रष्ट कर उन्हें अश्लीलता की ओर ले जा रहें हैं और हम मूक दर्शक बने ये सब होता देख रहे हैंहमें अपने बच्चों के साथ अधिक से अधिक समय बिताने की कोशिश करनी चाहिए जिससे कि उन्हें उचित संस्कार मिल सकेबच्चों के साथ हमारा जितना ज्यादा संवाद होता है हम अपने बच्चों की मुश्किलों को उतना ही बेहतर तरीके से समझ पाते हैंहर बच्चे में कोई कोई खास बात ज़रूर होती है

उस खास बात को पहचानना और उसको विकास का वातावरण देना ,ये एक श्रमसाध्य और असीमित धैर्य की अपेक्षा रखने वाला कार्य हैंयहीं से प्रत्येक भविष्य निर्माता की जिम्मेदारी की शुरुआत होती हैजब हमारा संवाद बच्चों से नहीं हो पाता तब वे अभिव्यक्ति के दूसरे विकल्पों का रुख करते हैंकई बार ये विकल्प सकारात्मक  की अपेक्षा नकारात्मक भी हो सकते हैंइलेक्ट्रोनिक माध्यम से जब बच्चा अपनी अभिव्यक्ति खोजता है तब प्रायः ये देखने में आया है कि कुछ शातिर किस्म के लोग हमारे फूल जैसे बच्चों की कोमल भावनाओं का गलत इस्तेमाल करते हैंपारिवारिक टूटन ,षड़यंत्र और अश्लीलता परोसने वाले सीरियल हमारे बच्चों की विकासोन्मुख मानसिकता पर विपरीत प्रभाव डालते हैंमीडिया द्वारा सृजित इस जाल से बचने के लिए बच्चों को विवेक वयस्कता की आवश्यकता होती हैंजिससे बच्चे उचित- अनुचित का फर्क करने में सक्षम हो सकें

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