भावी शिक्षक और उच्च शिक्षा
विश्वविद्यालय में एक अदद प्रवक्ता बनने की चाह में न जाने कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं .एक सामान्य
प्रतिभा का पुलिंदा धारी प्राणी यह गलत फहमी पाल लेता है कि उसकी दिन रात की मेहनत रंग लाएगी और वह जरुर भारत के भविष्य निर्माण में हाथ बंटा पाएगा . लेकिन जब उसका सामना वास्तविकता से होता है, तो उसकी अक्ल पर पड़ा अक्लमंदी का दम्भी पर्दा स्वत: ही हट जाता है और उसे अपने ज्ञानी होने की अज्ञानता का बोध हो जाता है . उसे परमहिमाप्रसारण के सन्दर्भ में अपनी योग्यता का अहसास जल्द ही हो जाता है। बेचारा लग जाता है दिन रात एक कर सर्वोच्चमहिमाधारी खेवनहार की तलाश में .वो बेचारा एक ढूँढ़ता है ,उसे ऐसे महिमाधारी हजारों की संख्या में मिल जाते हैं .जो लगातार ऐसे लोगों की तलाश में लगे हैं जो उनकी महिमा का बोझ वहन कर महिमा का अविरल प्रसार कर सके .इस परंपरा के प्रसार से उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रतिभाशाली सृजनात्मक शिक्षकों का पहुँच पाना एक सपना ही रह जाता है।शिक्षा राजनीतिक गुटबाजी का शिकार सी हो जाती है। शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया में वस्तुनिष्ठता के स्थान पर जब व्यक्तिनिष्ठता हावी होने लग जाती है उसी क्षण शिक्षा का पतन होना शुरू हो जाता है। एक सही शिक्षक के चयन में वस्तुनिष्ठता का होना शिक्षण की प्रभावशीलता की दृष्टि से बेहद जरुरी है। जब चयन समिति के नज़रिए में व्यक्तिनिष्ठता अपने चरम पर पहुँच जाती है तब प्रतिभा का नहीं व्यक्ति का चयन हो जाता है।
यहाँ पर चयन- दृष्टि प्रतिभा केन्द्रित नहीं बल्कि व्यक्ति केन्द्रित हो जाती है।
अब बात करते हैं समाधान की। अगर यह समस्या है तो फिर इसका समाधान क्या है ? बेहद आसान समाधान है इस समस्या का : राज्यों में राज्यस्तरीय संस्था SLET के अलावा एवं राष्ट्रीय स्तर पर UGC, NET के अलावा एक अतिरिक्त प्रतियोगिता परीक्षा का आयोजन कर सकती हैं जिसमें संभावित तदर्थ /स्थायी रिक्तियों हेतु उम्मीदवारों को सर्वोच्च प्राप्तांकों की मेरिट के आधार पर मात्र एक शैक्षणिक वर्ष के लिए सूचीबद्ध किया जा सकता है। रिक्तियां होने पर सूचीबद्ध उम्मीदवारों में से ही मेरिट के आधार पर नियुक्ति दी जा सकती है । यह सूची प्रत्येक विश्वविद्यालय के तदर्थ पैनल के स्थान पर लायी जा सकती है। मेरिट सूची को मात्र एक शैक्षणिक वर्ष के लिए ही मान्य बनाया जा सकता है। यह परीक्षा प्रत्येक वर्ष आयोजित की जा सकती है. इससे फायदा यह होगा कि चयन प्रक्रिया से व्यक्तिनिष्ठता समाप्त हो जाएगी।प्रतिभाशाली उम्मीदवार ही शिक्षक बन सकेगा। चाटुकारिता की परंपरा पर विराम लग सकेगा। चयन समिति का नियुक्ति प्रक्रिया से अधिकार समाप्त होने से पद के उपयुक्त व्यक्ति ही चुना जा सकेगा। जिसकी विषय पर अच्छी पकड़ है। यहाँ एक बात सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है , जो परीक्षा आयोजित की जाए, वह वस्तुनिष्ठ अर्थात बहुवैकल्पिक हो। उसके प्रश्नों में गहराई हो , शिक्षा मनोविज्ञान , शिक्षण विधियों ,शिक्षा दर्शन, शिक्षा का इतिहास से सम्बंधित प्रश्न भी मुख्य विषय के साथ होने चाहिए ताकि भावी शिक्षकों की विषय विशेषज्ञता के साथ -साथ उनकी की शिक्षण अभिक्षमता की भी परख की जा सके। आज के समय में प्रत्येक शिक्षक के लिए मात्र विषय का ज्ञान होना ही पर्याप्त नहीं है। ज्ञान तो इन्टरनेट पर भरा पड़ा है, बल्कि एक शिक्षक के लिए शिक्षण की विविध प्रविधियों की भी जानकारी होना बेहद ज़रूरी है। क्योंकि विद्वान होना अलग बात है , और शिक्षक होना अलग बात। ज्ञानी हम बेहद हो सकते हैं। यदि सामान्य छात्र तक हम सहज बोधगम्य तरीके से अपनी बात नहीं पहुँचा सकते तो हमारे ज्ञानी हों का क्या अर्थ है ? आज बाज़ार तरह -तरह की गाइड्स से भरे पड़े हैं। इसी से हमारी शिक्षण योग्यता पर सवालिया निशान लग जाता है। बच्चों को हम विषय समझा नहीं पा रहे और छात्र गाइड्स में अपना सुनहरा भविष्य तलाश रहें हैं। यह सब नियुक्ति प्रक्रिया में व्यक्तिनिष्ठता का ही परिणाम है। अंत में यही कहा जा सकता है कि मेरिट सूची निर्माण के लिए होने वाली परीक्षा में नकारात्मक अंकों का
प्रावधान जरुर होना चाहिए जिससे कि तुक्का लगाने वाले के स्थान पर विषय की गहरी समझ रखने वाला उम्मीदवार ही मेरिट सूची में आ सके। जब तक ऐसा नहीं होगा उच्च शिक्षा में प्रतिभाओं का पदार्पण सदैव अवरुद्ध रहेगा।
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