शनिवार, 8 नवंबर 2014

कागजों की बर्बादी

कागजों की बर्बादी के लिए बड़े-बड़े नामी शैक्षिक संस्थान भी कम ज़िम्मेदार नहीं हैं। पाठ्यक्रम में निर्धारित शीर्षकों की सूची छात्र-छात्राओं को दे दी जाती है । सभी छात्र जाते हैं लायब्रेरी में और छाँट -छाँटकर शीर्षक निकालते हैं और फिर शुरू हो जाता है कभी न थमने वाला फोटोस्टेट का दौर जो वर्षपर्यंत सतत चलता रहता है। और प्रोफे्सर इस ओर से अपनी आँखें मूँद लेते हैं। इस प्रकार छात्रों के पैसे और असीमित कागजों की बर्बादी साल दर साल होती रहती है साथ प्राणवायु के स्रोत वृक्ष भी दम तोड़ते रहते हैं। यह तो हुई समस्या। अब बात करते हैं समाधान की। पाठयक्रम में निर्धारित विषय विशेष के जितने भी आवश्यक शीर्षक हैं पाठयक्रम निर्माताओं को उस शीर्षक के विशेषज्ञ द्वारा लिखित सामग्रियों को इकठ्ठा कर एक पुस्तक का रूप दे देना चाहिए । इससे प्रत्येक छात्र को विषय से सम्बद्ध ज़रूरी, सटीक एवं प्रामाणिक सामग्री आसानी से उपलब्ध हो जाएगी जिससे वे अनावश्यक फोटोस्टेट नहीं करवाएँगे। क्योकि उनको आवश्यक सामग्री व्यवस्थित रूप में एक ही पुस्तक में मिल जाएगी। जिसे खुद विषय के शिक्षकों ने तैयार किया है। इस कारण छात्रों के लिए यह बहुत उपयोगी होगी। यदि कोई छात्र अतिरिक्त जानकारी चाहते हैं तो उनके लिए लायब्रेरी में पर्याप्त मात्रा में शिक्षको द्वारा अनुमोदित अतिरिक्त पुस्तकें भी होनी चाहिए। फिर फ़ोटो स्टेट की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी।यकीन मानिए बेवजह फोटोस्टेट के कारण करोड़ों पेज़ बर्बाद होते हैं और लाखों पेड़ कटते हैं। दिल्ली यूनिवर्सिटी के पटेल चेस्ट इलाके में कदम-कदम पर फोटोस्टेट की ऐसी अनेक दुकाने सजी हैं जो दिन रात इस काम को अंजाम देती हैं।और लाखों पेज फोटोस्टेट करती हैं। क्या केंद्रीय शिक्षा मंत्री महोदया को इस सन्दर्भ में कोई कदम उठाना चाहिए ?

कोई टिप्पणी नहीं: